‘मोक्षिका’ शीर्षक मेरी पुत्री मक्षिका के बाद मेरे जीवन में आए विभिन्न बदलाव और मेरे नज़रियों में हुए बदलवों को समर्पित है जो मातृत्व के गहरे अर्थों, संघर्षों और कठिन जीवन से जुड़ा है।इसमें मैंने अपने अनुभवों और आस-पास के बदलते परिवेश, पुरानी जकड़ी मान्यताओं और उनसे उपजे विभिन्न विचारों, नए समाज में रिश्ते, नारी की दशा, पीड़ा, प्रेम, इंटरनेट का जीवन पर प्रभाव,दोस्ती और पुराने मित्र संबंधों को व्यक्त करने की कोशिश की है। आज के परिवेश में जिस तरीक़े से नई सोचा उभरी है उसको भी साक्षी करके कुछ कविताओं के स्वर मेरे मन में अनायास ही उभर आये।कोरोना काल और युद्ध की विभीषिका और उससे लड़ने के साहस ने भी मेरे अंतर्मन को कैसे हिलाया है ये सब भी काव्य संग्रह अपने अंदर संजोए है। सबसे बड़े अपने, परिवेश, समाज और देशकाल के अंतर्द्वंद्वों से मैंने काव्य संग्रह के मोती पिरोए है।वर्तमान में समाज में टूटते,जुड़ते और नए प्रतिमानों के कारण एक नारी के संघर्ष मेरे प्रिय विषय रहें है।


Mokshika by Kiran Kataria (Author)
₹350.00 Original price was: ₹350.00.₹300.00Current price is: ₹300.00.
‘मोक्षिका’ शीर्षक मेरी पुत्री मक्षिका के बाद मेरे जीवन में आए विभिन्न बदलाव और मेरे नज़रियों में हुए बदलवों को समर्पित है जो मातृत्व के गहरे अर्थों, संघर्षों और कठिन जीवन से जुड़ा है।इसमें मैंने अपने अनुभवों और आस-पास के बदलते परिवेश, पुरानी जकड़ी मान्यताओं और उनसे उपजे विभिन्न विचारों, नए समाज में रिश्ते, नारी की दशा, पीड़ा, प्रेम, इंटरनेट का जीवन पर प्रभाव,दोस्ती और पुराने मित्र संबंधों को व्यक्त करने की कोशिश की है। आज के परिवेश में जिस तरीक़े से नई सोचा उभरी है उसको भी साक्षी करके कुछ कविताओं के स्वर मेरे मन में अनायास ही उभर आये।कोरोना काल और युद्ध की विभीषिका और उससे लड़ने के साहस ने भी मेरे अंतर्मन को कैसे हिलाया है ये सब भी काव्य संग्रह अपने अंदर संजोए है। सबसे बड़े अपने, परिवेश, समाज और देशकाल के अंतर्द्वंद्वों से मैंने काव्य संग्रह के मोती पिरोए है।वर्तमान में समाज में टूटते,जुड़ते और नए प्रतिमानों के कारण एक नारी के संघर्ष मेरे प्रिय विषय रहें है।
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