JEEVAN KE INDRADHANUSH जब मेरा पहला काव्य-मधुकर और मैं, प्रकाशित हुआ तो मेरे कई परिचितों ने कहा कि तुम कहानी क्यों नहीं लिखती? आजकल साहित्य के क्षेत्र में गद्य पढ़ना लोग ज्यादा पसंद करते हैं। कविता या शायरी पढ़ने वाले उँगलियों पर गिने जा सकते हैं लेकिन कहानी या उपन्यास पढ़ने वाला वर्ग विस्तृत है। अगर साहित्य में स्थान बनाना हो तो गद्य में लिखना आरम्भ करो। यह सब सुनकर मन आहत हुआ। उस वक्त मेरे मन से एक ही बात निकली “जब तक सीने में दिल है और दिल में भावनाएँ कविता का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं होगा “।
कविता का साहित्य में वही स्थान है जो शरीर में प्राणवायु का है। जिस तरह आत्मा के बिना शरीर मिट्टी है उसी तरह काव्यात्मक अभिव्यक्ति के बिना साहित्य निष्प्राण है।
हमेशा लीक से हटकर लिखने का प्रयास मुझे आज यहाँ तक ले आया है कि मैं अपने पाठकों के सम्मुख अपने हृदय के उद्गार व्यक्त करने की हिम्मत जुटा पा रही हूँ। मेरी कलम पर जीवन के विभिन्न रूपों ने ममतामयी स्नेह की बारिश की है।
समय-समय पर मेरे मित्रों और शुभचिंतकों का प्रोत्साहन मुझे मिलता रहा है ।
“कुसुम तिवारी झल्ली”
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